गीत नवगीत कविता डायरी

12 January, 2013

चंद कविताएँ

  मौन
देह की टूटन,
मन की थकान
इच्छाओं की
ऊँची इमारतें..!
रीढ़ की हड्डी
तोड़ देतीं हैं,
दिल का दिमाग़ से
रिश्ता तोड़ देतीं हैं ..!
इतना झुका देतीं
इतना रुला देतीं हैं
कि नींव की नमीं
नहीं जाती ..
दरारों की पीर
कही नहीं जाती ..!
दर्द बता नहीं पातीं
चौखटों की बाहें ..!
और मौन पढ़ना
आसान नहीं होता ...!!

    सुहागन
मेरे प्रिय
सांस-सांस है नाम 
तुम्हारा लेती जाती !
बिन कागज़ के 
बिना कलम के,
मौन अधर पर 
पाती कोई लिखती जाती.!
दूर होकर भी पास 
प्रेम प्रबल विश्वास ..!!
खोज रही हैं फिर क्यों तुमको ..
खारी आँखें..!!
काट रही हूँ जाग-जाग 
संयासिनि रातें..!!
याद रहे बिन सेंदुर के ...
हो गई सुहागन ..
खुद पर ही इतराती जाती ....
नाम तुम्हारा लेती जातीं ..
पगली साँसें ..!!!
  
एहसास
मैं भीड़ से 
गुजर तो आई हूँ
कई बार लगा तुम हो ..
कई बार लगा कि नहीं मैं हूँ 
कई बार हुआ एहसास कि हम हैं 
साथ ..न तुम थेन मैं थी 
था ये महज आभास 
जैसे इक समुन्दर में डूब कर भी 
शेष हो प्यास 
बरस जाते जो कभी तुम 
इक बूँद बन..
होता उस भीड़ में भी कहीं 
तुम्हारी छुअन का एहसास 
तुम नहीं थे पास..
भीड़ से गुजर तो आई हूँ
खाली हाथ ... !!

   औरतें
हम औरतें ...!!
सूरज की पहली किरण से पहले,
छोड़ कर नींद का हाथ /
शोर के उठने से पहले,
थाम कर मौन का हाथ //
खटने लगतीं हैं ..
चूल्हा,चौका,बर्तन,बच्चों
और शौहर के बीच..//
चकरघिन्नी सी घूमती हैं
घडी की सुई के साथ-साथ /
इतना भी समय कहाँ कि 
सुन सकें अपनी धड़कन,
और साँसों की धुन ...
हम औरतें ..!!

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